हौज़ा न्यूज़ एजेंसी
तफ़सीर; इत्रे क़ुरआन: तफ़सीर सूर ए बकरा
بسم الله الرحـــمن الرحــــیم बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُتِبَ عَلَيْكُمُ الصِّيَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ या अय्योहल लज़ीना आमनू कूतेबा अलैकुम अस सयाम कमा कूतेबा अलल लज़ीना मिन क़बलेकुम लाअल्लकुम तत्तक़ून (बकरा, 183)
अनुवाद: हे विश्वासियों! तुम्हारे लिए रोज़ा फ़र्ज़ किया गया है जैसा कि तुमसे पहले वालों के लिए फ़र्ज़ किया गया था। ताकि आप पवित्र बनें।
क़ुरआन की तफ़सीर:
1️⃣ मुसलमानों के लिए रोजा फ़र्ज़ है।
2️⃣ रोज़े की एक शर्त ईमान है।
3️⃣ इस्लामपूर्व धर्मों में भी रोज़ा अनिवार्य था।
4️⃣ दैवीय धर्मों के नियम और आदेश समान हैं।
5️⃣ तक़वा हासिल करने और गुनाहों से बचने में रोजा अहम भूमिका निभाता है।
6️⃣ तक़वा प्राप्त करना और पापों से बचना सभी मनुष्यों की जिम्मेदारी है।
7️⃣ धार्मिक कर्तव्यों और आदेशों के दर्शन को समझाना कुरान के तरीकों में से एक है।
8️⃣ क़ानून बनाने वालो के लिए कानूनों के दर्शन को समझाना एक अच्छी और बेहतर प्रथा है।
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तफसीर राहनुमा, सूर ए बकरा
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